शेयर बाजार 10 ऐतिहासिक गिरावट और उनके कारण

 




  1. 2008-2009 की बेकाबू मंदी


     


    2008 की शुरुआत में जीडीपी के लगातार नकारात्मक आंकड़ों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी  थी। इस दौरान अमेरिका में होम लोन और मॉर्गेज लोन न चुका पाने वाले ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिससे लेहमैन ब्रदर्स, मेरीलिंच, बैंक ऑफ अमेरिका जैसी दिग्गज फंस गए और देखते ही देखते अमेरिका में 63 बैंकों में ताले लग गए। इस असर पूरी दुनिया पर हुआ और सारे बाजार औंधे मुंह गिरे। करीब 17 महीने चले इस मंदी के दौर में डाउ जोन्स 9 अक्टूबर 2007 के 14164 अंकों के स्तर से 5 मार्च 2009 को 6,594 तक गिर गया।


     




  2. अमेरिका पर 9/11 का आतंकी हमला


     


    जनवरी 2000 तक डाउ जोन्स 11,722 के उच्चतम स्तर पर था लेकिन 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले के बाद मार्केट लगातार हफ्तेभर बंद रहा लेकिन जब 17 सितंबर खुला तो 684 अंक गिर गया और शुक्रवार को बंद होने वाले दिन इसमें इतिहास की सबसे बड़ी 1370 अंकों की गिरावट दर्ज की गई और यह 8920 के स्तर पर आ गया। इसके बाद पूरे 13 महीने तक अमेरिका पर आतंकी हमलों का डर बना रहा और इंडेक्स 38% गिरावट के साथ 7286 के लेवल तक गिर गया।


     




  3. 1998 का वैश्विक करेंसी संकट


     


    1997 – 1998 में डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा की अस्थिरता और अवमूल्यन के कारण थाईलैंड से शुरू हुए करेंसी संकट डाउ जोन्स समेत दुनियाभर के बाजारों को कमजोर किया। मार्केट एक ही दिन में 7% गिरकर 7161 के लेवल पर आ गया। यह संकट में बाद में रूस, मलेशिया, चीन, सिंगापुर, ताइवान, वियतनाम, लाओस, ब्रुनेई और फिलीपींस तक फैल गया। स्थितियां सुधरने के बाद भी इस वैश्विक संकट के चलते इंडेक्स अगस्त 1998 में 7539 पर बना रहा।


     




  4. 1990-91 का कुवैत - इराक युद्ध


     


    2 अगस्त 1990 को इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था। यह खाड़ी युद्ध की शुरुआत थी और इसके बाद अमेरिका के नेतृत्व में 34 देशों ने इराक पर जोरदार हमले किए। इसी के चलते डाउ जोन्स लगातार तीन महीने गिरा और 2864 से गिरकर 2365 के स्तर पर आ गया।  


     




  5. 1987 का ब्लैक मंडे मार्केट क्रैश


     


    19 अक्टूबर 1987 को एक ही दिन में डाउ जोन्स 23% गिरकर 2246 से 1738 पर आ गया। यह सोमवार का दिन था और इसे ब्लैक मंडे नाम दिया गया। इसके पीछे की वजह मार्केट बंद होने बाद गलत तरीके से की गई कम्प्यूटर ट्रेडिंग थी जिसमें बिकवाली का दबाव बनाया जाता था। इस संकट के कारण मार्केट में लिक्विडिटी भी कम हो गई और निवेशकों में डर बैठ गया।


     




  6. 1980 - 82 में फेडरल बैंक का फैसला


     


    13 फरवरी 1980 को डाउ जोन्स 903 के स्तर से गिरकर 759 के स्तर पर आ गया। इसके पीछे अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा अपने फंड रेट घटाने का फैसला था जिसमें बढ़ती मंहगाई को थामने के लिए दरें 8.5% तक कम कर दी गई थी। पॉल वॉल्कर के नेतृत्व में लिए गए इस फैसले से मार्केट में यह नकारात्मक संदेश गया कि सरकार बिजनेस के लिए किया जाने वाला खर्च घटा रही है। अगस्त 1982 तक अमेरिकी मार्केट 776 के स्तर पर बना रहा।


     




  7. 1973- 75 का तेल संकट और मंदी


     


    जनवरी 1973 में डाउ जोन्स 1051 के स्तर पर था लेकिन तेल उत्पादक देशों के इज़राएल विरोध के कारण लगाए गए इम्बार्गो के कारण मार्केट करीब 45% धराशायी होकर 598 अंकों के स्तर पर आ गया। इस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी देशों में हुए ब्रेटन वुड सिस्टम की असफलता ने और गहरा दिया।


     




  8. 1962 का क्यूबा मिसाइल संकट


     


    इस दौर में सोवियत संघ का क्यूबा में दखल बढ़ रहा था और इसी के चलते अमेरिका ने क्यूबा पर व्यापार प्रतिबंध लगा दिए थे। इस दौरान अमेरिका के जासूसी सैटेलाइट ने क्यूबा में सोवियत न्यूक्लिअर मिसाइल बेस का पता लगाया तो तनाव और बढ़ गया। नतीजा यह हुआ कि डाउ जोन्स करीब 26% गिरकर 728 से 535 के स्तर पर आ गया।


     




  9. 1945 से 1960 की मंदी


     


    दूसरे विश्व युद्ध से उबर रहे विश्व में 1945 में डाउ जोन्स सिर्फ 153 के स्तर पर था और मजबूत हो रहा था। लेकिन अगले 15 साल लगातार हर तीन साल में मंदी का दौर आया और बाजार तेजी से गिरा। 1957 में डाउ जोन्स 506 के स्तर पर था लेकर फेडरल बैंक की मौद्रिक नीतियों के नकारात्मक असर के चलते यह गिरकर 434 अंकों पर आ गया। इसके बाद अगले दो साल में यह मजबूत हुआ और 31 दिसंबर 1959 तक 679 तक पहुंच गया। इसके बाद फिर से सरकारी नीतियों के दबाव में मार्केट क्रैश हुआ और 1 नवंबर 1960 को करीब 14% गिरकर 585 के स्तर पर आ गया।


     




  10. 1929 की वैश्विक महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन)


     


    वैश्विक महामंदी मंगलवार, 29 अक्टूबर 1929 को अमेरिकी शेयर बाजारों के गिरने से शुरू हुई थी। इस दौरान डाउ जोन्स 381 अंकों पर था और अगले 4 साल में 90% गिरकर 1932 तक सिर्फ 41 अंकों पर आ गया था। दुनिया की अब तक की सबसे विध्वंसक आर्थिक त्रासदी माना जाता है। इस दिन मंगलवार था। इसलिए इसे ‘ब्लैक ट्यूसडे’ भी कहा जाता है। इस दौरान मांग में भारी कमी हो गई और औद्योगिक विकास के पहिये जाम हो गए। लाखों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। कृषि उत्पादन में भी 60 फीसदी तक की कमी हो गई। महामंदी में उस समय 30 बिलियन डॉलर (आज के 396 बिलियन डॉलर) स्वाहा हो गए जो कि पहले विश्व युद्ध के खर्च से भी ज्यादा था।